Saturday, April 11, 2009

अंतर्गाथा- साला मैं तो एंकर बन गया।

अंतर्गाथा- मैं सिफारिशी लाल बोल रहा हूं


मेरा नाम है सिफारिशी लाल। आज कल मैं एंकर हूं, प्रतिष्ठित चैनल में... पहले मैं कबाड़ खरीदने बेचने का काम करता था। लेकिन उस बात को दिल पर न लें। क्योंकि उससे भी पहले मैं जनपथ पर लुंगी और रुमाल बेचा करता था।


बहरहाल, आज मेरी एंकरिंग का पहला दिन है। मैंने एक दम झक्क नया कोट-पैंट खरीदा है। मूंछें करीने से कुतरवाई हैं, शेव को सीधा-उल्टा दोनों तरह से मारा है। स्लमडॉग की तरह एक लड़की इम्प्रैस करनी है आज।


चेहरे पर ढेरों मेक-अप पुतवा कर नकली चेहरा लाना और नकली शालीनता लाना ज़रुरी है। हमारे चैनल की खासियत है शालीनता। ओढी हुई। मेरे चश्मे का एक रिम टेढा़ हो चुका है, लेकिन ुसे सीदा करने का वक्त नहीं है। दुनिया को टेढी़ निगाह देखना ज़रूरी हो गया है।


मैं तैयार हूँ। ८ बस बजने ही वाले हैं। टीम ने स्क्रिप्ट लिख दी होगी। उसपर नज़र डालकर होगा क्या? सीधे टेलि-प्रॉम्प्टर से पढेंगे। ऊपर से प्रसन्न दिखने की चेष्टा कर रहा हूं। अंदर से दिल धक्क-धक्क और सांसे फक्क-फक्क कर रही हैं। सिर्फ मैं ही जानता हूं कि ८ बजे का प्राइम टाइम पाने के लिए कितनी टंगड़ी मारनी पड़ी है मुझे।


पसीना आ रहा है पेशानी पे। ब्लड का बहाव तेज़ हो गया है। टीम के सारे लोग दुश्मन लग रहे हैं। स्क्रिप्ट में स, श और ष का अनुप्रास जानबूझकर डाल दिया है चू.. यो ने। सोच रहा हूं कि अपना अजेंडा कैसे पेल दूं कार्यक्रम में, आखिर जिन आकाओं ने मुझे यहां तक पहुंचाया, उनसे वफा करना ही होगा।
इस ज़माने में वफा की उम्मीद करना बेकार है, लेकिन हम उन लोगों में हैं जो वफादार है। हो भी क्यों न कोई और चारा ही नहीं। पैर छू-छू कर तो यह पद मिला है। जितने सांसदों -विधायको-पार्षदों को जानता हूं, सबके चरण घिस दिए हैं छू-छू कर मैंने।


कईयों ने तो अपने चरणों का देसी इस्तेमाल किया है मेरे लिए। मतलब मुझे लात भी मारी है। लेकिन दुधारु गाय की तो लात भी सहनी पड़ती है, है ना। सो उनके चरणों को मैं चरणामृत समझ कर सादर ग्रहण करता हूं, किया है आज तक।


एडीटोरियल टीम के मेरे लोग गदहे हैं। बड़े आदमी की अहमियत नहीं समझते। मै कितना बड़ा हूं इसका कत्तई अंदाजा नहीं है इन्हें। बहरहाल, मैंने रनडाउन देख लिया है। मेरा तो कहीं नाम ही नहीं है। इतने बड़े आदमी का नाम तो कार्यक्रम से भी बड़ा होना चाहिए।


कार्यक्रम की शुरुआत ही होनी चाहिए... नमस्कार....। मैं हूं सिफारिशी लाल, और मेरे साथ हैं मेरे को-एंकर हरफनमौला.. मेहमान है घुन्ने लाल. चर्चा करेंगे हॉलैंड में अकालपीडितों पर। सबसे आखिर में बोलूंगा कार्यक्रम का नाम.. न्यूज़ आठ बजे।


लेकिन लाइट्स जल चुकी हैं, कैमरा ऑन हो चुका है, मुझे घबराहट वैसी ही हो रही है, मेरा साथ एंकर हरफनमौला मुझसे ज्यादा तेज़ है। शुरु मुझे करना है, शुरु कैसे किया जाए????


हां, आइसक्रीम की फेरी वाले की तरह चीख कर, सावधान मुद्रा में... नमस्काआआआआआआआर। इससे आईबीएन-७ वाले आशुतोष वाला पुट भी आ जाएगा। कबाडी खरीदते वक्त भी मैं ऐसे ही फेरियां लगाया करता था। जिंदाबाद मिल गया... यूरेका।


लो जी कार्यक्रम हो गया शुरु। थोड़ा सा अटक गया मै लेकिन कोई बात नहीं देश की जनता के लिए नहीं अपनी प्रेमिका की आंख और आकाओँ के चरणों में समर्पित मेरी ये एंकरिंग.. बस स, श और ष सही से कहना है।


....नमश्कार, मैं हूं शिपारिसी लाल और मेरे शाथ हैं मेरे शाथी एंकर हरफनमऊला जी, ......

एडिटोरिल वाले गधे कान में कुछ कह रहे हैं टॉक बैक के ज़रिए, चूतियों को कहने दो, साला मैं तो एंकर बन गया। सवाल दर सवाल पूछते चलो। मतलब चाहे उसका कुछ न हो।

3 comments:

Anil Pusadkar said...

करारा व्यंग है,तारीफ़ करते-करते थक़ जायेंगे। कमाल की कलम है आपकी॥

महेन्द्र मिश्र said...

अरे आप तो एंकर बन गए जी . करार सटीक व्यंग्य है . धन्यवाद.

Anonymous said...

achchha hai, lekin aapki kavita jindgi kya hai, adhik sundar hai.

---------------------------------------"VISHAL"