Monday, December 12, 2011

दिल्ली कैसे बनी राजधानी


साल 1911, 12 दिसंबर, दिन मंगलवार, किंग जॉर्ज पंचम के राज्यारोहण का उत्सव मनाने और उन्हें भारत का सम्राट स्वीकारने के लिए दिल्ली में एक दरबार आयोजित किया गया। दरबार में ब्रिटिश भारत के शासक, भारतीय राजकुमार, सामंत, सैनिक और अभिजात्य वर्ग के लोग बड़ी संख्या में मौजूद थे। दोपहर बाद 2 बजे वायसराय लॉर्ड हॉर्डिंग ने उपाधियों और भेंटों की घोषणा के बाद राजा जॉर्ज पंचम को एक दस्तावेज़ सौंपा। अंग्रेज राजा ने वक्तव्य पढ़ते हुए पूर्व और पश्चिम बंगाल को दोबारा एक करने समेत कई प्रशासनिक बदलावों का ऐलान किया, लेकिन सबसे हैरतअंगेज फैसला था राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने का।





इस घोषणा ने एक ही झटके में एक सूबे के शहर को एक साम्राज्य की राजधानी में बदल दिया, जबकि 1772 से ब्रिटिश भारत की राजधानी कलकत्ता थी। 1899 से 1905 के दौरान भारत के वॉयसराय रहे लॉर्ड कर्ज़न, ने इस खबर पर प्रतिकूल प्रतिक्रिया दी थी। कर्जन ने दिल्ली कोवीरान खंडहर और कब्रों का ढेर कहा था।


यह सच है कि अपने समृद्ध और गौरवशाली अतीत के बावजूद जिस समय दिल्ली को राजधानी बनाने का फ़ैसला किया गया, उसवक्त वह किसी भी लिहाज़ से एक प्रांतीय शहर से ज़्यादा नहीं थी। किंग जॉर्ज पंचम की घोषणा से हर कोई इसलिए भी हैरान था, क्योंकि यह पूरी तरह गोपनीय रखी गई थी।


जॉर्ज पंचम की भारत यात्रा के छह महीने पहले ही ब्रिटिश भारत की राजधानी के स्थानांतरण का फैसला किया जा चुका था लेकिन इससे इंग्लैंड और भारत में दर्जन भर व्यक्ति ही वाक़ि़फ थे।



सात दिसंबर, 1911 को जार्ज पंचम और क्वीन मेरी दिल्ली पहुंचे। शाही दंपत्ति को एक जुलूस की शक्ल में शहर की गलियों से होते हुए विशेष रूप से लगाए गए शिविरों के शहर यानी किंग्सवे कैंप में गाजे-बाजे के साथ पहुंचाया गया। एक बहुत बड़े अर्द्धचंद्राकार टीले से क़रीब 35,000 सैनिक और 70,000 दर्शक दरबार के चश्मदीद गवाह बने।


25 गुणा 30 मील के घेरे में फैले क्षेत्र में 223 तंबू लगाए गए, जहां 60 मील की नई सड़कें बनाई गईं और क़रीब 30 मील लंबी रेलवे लाइन के लिए 24स्टेशन। दरअसल, दिल्ली दरबार का आयोजन एक जनवरी, 1912 को होना था,पर इस दिन मुहर्रम होने की वजह इसे कुछ दिन पहले करने का फैसला किया गया।


बहरहाल, 15 दिसंबर, 1911 किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मेरी ने नई दिल्ली शहर की नींव के पत्थर रखे। लेकिन असली समस्या शहर बसाने की जगह को लेकर आई।


लॉर्ड हार्डिंग, रॉबर्ट ग्रांट इर्विंगंस की पुस्तक-इंडियन समर में कहते हैं, हमें मुगल सम्राटों के उत्तराधिकारी के रूप में सत्ता के प्राचीन केंद्र में अपने नए शहर को बसाना चाहिए. वायसराय ने बतौर राजधानी दिल्ली के चयन का ख़ुलासा करते हुए कहा कि यह परिवर्तन भारत की जनता की सोच को प्रभावित करेगा।





नई दिल्ली के लिए कई जगहों के बारे में सोचा और नामंजूर किया गया। दरबार क्षेत्र को अस्वास्थ्यकर माना गया जहां बाढ़ का भी ख़तरा था। अपेक्षाकृत बेहतर सब्जी मंडी के इलाक़े को फैक्ट्री मालिकों और सिविल लाइंस में यूरोपीय आबादी की नाराज़गी के डर से अपनाया नहीं गया।


बहरहाल, इमारत निर्माण से जुड़ी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का जिम्मा अंग्रेज वास्तुकार एडविन ल्युटियन्स और उनके मित्र हार्बर्ट बेकर को सौंपा गया। लुटियन के नेतृत्व में मौजूदा पुराने शहर शाहजहांनाबाद के दक्षिण में नई दिल्ली के निर्माण का कार्य 1913 में शुरू हुआ, जब नई दिल्ली योजना समिति का गठन किया गया।


-----जारी

1 comment:

sproutsk said...

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