Tuesday, September 12, 2017

ठर्रा विद ठाकुरः हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर

पेड़ के नीचे बैठे गुड्डू भईया तकरीबन ध्यान की मुद्रा में थे. मैं गुजर रहा था तो सोचा चुपके से निकल लूं. आखिर गुड्डू भैया अभी ब्लेसिंग स्टेट में होंगे तत्व सेवन के बाद. सुबह-सुबह उठकर ह्विस्की के घूंट भर लेना गुड्डू जी की आदत थी और गुड्डू उसे आचमन कहते.

मेरे कदमों की आवाज सुनकर गुड्डू ने आंखें खोल दीः ठाकुर कहां भगे जा रहे हो, तनिक मैनाक पर विश्राम-सा कर लो. अब भागने की कोई राह न थी, मैं उनके कदमों में कुछ ऐसे बैठ लिया जैसे पुराने जमाने में छात्र गुरुओं के पैरों के पास बैठते थे. ज्ञान हासिल करने के लिए.

गुड्डू भैया अभी प्रकृतिस्थ हो पाते कि मैंने कहाः शिक्षक दिवस की मुबारकवाद हो गुड्डू भिया.

हैप्पी टीचर्स डे. मैं चौंका, अरे भिया आप और अंग्रेजी!

गुड्डू कुछ वैसे ही चौंके जैसे कबूतर की तरफ पत्थर उछालिए तो वह चौंकता हैः अबे ठाकुर, हम तो क्या चीज़ हैं चचा ग़ालिब तक अंग्रेजी के शौकीन थे. उनको तो एक स्कॉच से ऐसी मुहब्बत थी कि पटियाला नरेश के न्योते के बावजूद नहीं गए थे. वह स्कॉच सिर्फ दिल्ली छावनी में मिलती थी.

वह तो ठीक है गुड्डू भिया. आज शिक्षक दिवस के मौके पर भी शराबनोशी!

गुड्डू ने अपनी सींकिया काया को जितना मुमकिन था उतना फुलाकर कहाःल हर शब पिया ही करते हैं मय जिस कदर मिले...चचा ग़ालिब का ही कहा हुआ है. और तुम यह न दिवस वगैरह मना करके कैलेंडर मत बन जाओ. देखो यूं समझो कि जिस आदमी के लिए कुछ नहीं कर सकते उसका डे मना लो... सुनो कि एक दीवाने लेखक मंटो ने क्या लिखा है दुनिया में बड़े-बड़े सुधारक हुए हैं। उनकी शानदार शिक्षाएं भी रही हैं। शिक्षाएं वक्त के साथ घिस-मिट जाती हैं, खो जाती है। रह जाती हैं तो सलीबें, धागे, यज्ञोपवीत, दाढ़ियां, बग़लों के बाल...

लेकिन गुरुओं के योगदान को भुला सकता है कोई जीवन में?

क्यों भुलाएगा भाई? तुम्हारे जीवन में कोई ऐसा शिक्षक नहीं रहा जिसने तुमसे 27 का पहाड़ा न पूछा हो? खैर, जानना चाहते हो तो जानो कि शिक्षा का अधिकार कानून देशभर में अब तक नौ फीसदी से भी कम स्कूलों में लागू हो पाया है. यह कानून कहता है कि आठवीं तक तो सभी बच्चों को शिक्षा जरूरी तौर पर मुहैया कराई जाए. लेकिन यह तब होगा जब गांव-गांव स्कूल खुले, शिक्षकों की समस्याओं का समाधान हो, और शिक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाया जाए.

देखो, देशभर में करीब 50 फीसदी शिक्षक संविदा आधारित हैं...संविदा नहीं समझते? ठेके पर काम करने वाले शिक्षक. चिंदी भर की तनख्वाह मिलती है, पिर क्या पढ़ाएगा वह? शुक्राचार्य, वृहस्पति और द्रोण को ठेके पर रखकर देखते तो कभी न दानव स्वर्ग जीत पाते, न देवता दानवों से स्वर्ग छीन पाते, न तुमको अर्जुन, भीम, युधिष्ठिर, दुर्योधन जैसे रणबांकुरे मिल पाते. संदीपनि सुखी थे तो कृष्ण वासुदेव बने. पढ़ाई लिखाई भी कोई अनुबंध और ठेके पर देने की चीज है? ऐसे करवाओगे देश के भविष्य का निर्माण?

गुरुओं को क्यों नाराज कर रहे हो तुम लोग? कबीर को सुनोः

कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर ॥


गुड्डू भैया का सवाल सदी के सवाल की तरह छा गया. मैं चुप था कि गुड्डू भैया ज्ञानमुद्रा से वापस आएः पता है ह्विस्की की टीचर्स ब्रांड पौने दो सौ साल पुरानी है और इसको विलियम टीचर नाम के शख्स ने शुरू किया था.

मुझे नहीं मालूम था. मैंने कहाः आज के शिक्षक वेतन तो लेते है लेकिन पढ़ाने में फांकी मारते हैं.

गुड्डू उकडूं बैठ गएः देखो ठाकुर, हमारे यहां लोगों में यह गलतफहमी है कि शिक्षक को वेतन अधिक मिलता है, जबकि हालात इसके लट हैं. मौजूदा समय में देश के बजट का करीब 3.4 फीसदी शिक्षा पर खर्च किया जाता है. इसमें से करीब 65 फीसदी आमदनी सरकार को विविध उपकरों से होती है. यानी शिक्षा में हमारा खर्चा बहुत कम है. अच्छे वेतन की जो बात तुम कर रहे हो न, वैसे टीचर बहुत कम हैं...देशभर में 50 फीसदी शिक्षक वेतन से जूझ रहे हैं. जितने शिक्षक हैं उनमें से आधों को 6 हजार रु. से भी कम तनख्वाह मिलती है. शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए गठित किये गये कोठारी आयोग ने इस बात की सिफारिश की थी कि शिक्षक का वेतन कम-से-कम इतना तो हो ही कि उसे किसी तरह की आर्थिक परेशानियों से जूझना नहीं पड़े. आयोग ने शिक्षकों को एक सम्मानित वेतन देने की बात कही थी. लेकिन, सल में उनका वेतन न्यूनतम मजदूरी के बराबर है. अनुबंध पर काम करने वाले अधिकतर शिक्षकों की ट्रेनिंग नहीं हुई है. देशभर में करीब 11 लाख शिक्षक ट्रेंड नहीं हैं तो बताओ क्या पढ़ाएं ये लोग?

मैं संतुष्ट नहीं हुआः भिया, मास्टर लोग स्कूल छोड़कर धनरोपनी कराने निकल जाते हैं..

गुड्डू भिया मुस्कुरा उठेः वेतन दोगे मजदूर वाला और काम द्रोणाचार्य का लोगे? खाली मास्टर लोगों से उम्मीद करोगे कि वह पढ़ाई के बीच में धनरोपनी कराने न जाए. ग्रामीण इलाकों में अब भी करीब 10 फीसदी स्कूल ऐसे हैं, जहां एकमात्र शिक्षक हैं.

बेचारे एक ही मास्टर को बच्चों की हाजिरी देखनी होती है, सारे विषय और वर्गों को पढ़ाना होता है, अब तो दुपहरिया में खाने का इंतजाम भी करवाना होता है. और सरकार! एनसीइआरटी जैसे सरकारी शिक्षा संस्थानों को मजबूत बनाने के बजाय सरकार शिक्षा के लिए प्राइवेट सेक्टर की ओर देख रही है, इससे बेड़ा गर्क ही होगा न..

पता है सरकार ने 5 दिसंबर 2016 को लोकसभा में शिक्षा के आंकड़े पेश किए थे. उसके मुताबिक, सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में 18 फीसदी और माध्यमिक विद्यालयों में 15 फीसदी शिक्षकों के पद खाली हैं. देश भर में कुल मिलाकर करीब 10 लाख शिक्षकों की कमी है. देश के 26 करोड़ स्कूली छात्रों का करीब 55 फीसदी हिस्सा सरकारी स्कूलों में पढ़ता है. सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में माध्यमिक स्कूलों की सर्वाधिक रिक्तियां झारखंड में है, जो कि 70 फीसदी है. इस राज्य में प्राथमिक स्कूलों के लिए यह आंकड़ा 38 फीसदी है. उत्तर प्रदेश में माध्यमिक शिक्षकों के आधे पद खाली हैं, जबकि बिहार और गुजरात में यह कमी एक-तिहाई है. 60 लाख शिक्षकों के पदों में करीब नौ लाख प्राथमिक स्कूलों में और एक लाख माध्यमिक स्कूलों में खाली हैं.

लेकिन ठाकुर, जनगणना करवाना हो, मुर्गी, मवेशी, सूअर गिनवाना हो, मिड डे मील का भोजन बनवाना हो, ...बिना छत वाले स्कूल में पढ़ाना हो, बिना ब्लैक बोर्ड और खड़िया के पढ़ाना हो...बीडीओ से लेकर पंचायत सदस्य तक की जूती चटवाना हो...सारे काम शिक्षकों से करवा लो...

इतने के बाद शिक्षक अगर जिंदा रहकर पढ़ा रहा है ना, तो इसके लिए इस देश के तमाम प्रतिभावान् और कामचोर दोनों वर्गों के शिक्षकों का मेरा नमन.

गुड्डू संजीदा हो गए. आज मैंने उनके लिए शेर पढ़ाः

आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़'
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए


गुड्डू मुस्कुरा उठे, उनने अपने पैंताने छिपा रखी टीचर्स का एक खंभा निकाला और जोर से कहाः हैप्पी टीचर्स डे.



1 comment:

Meena sharma said...

वेतन दोगे मजदूर वाला और काम द्रोणाचार्य का लोगे?....
सही !!!